जब भी अकेले जीवन जीने का अवसर आए हमें अपने अंदर व्याप्त कमजोरी को खोजना चाहिए–कल्पदर्शिता

झाबुआ। धर्म हमें करना ही नहीं है वरन उसमें जीना है। जहां हम तुलना करेंगे, शिकायत होगी। तत्पश्चात मन में हीन भावना पैदा होगी, ध्यान के चार प्रकारों में से एक आर्तध्यान के अंतर्गत हीन भावना मस्तिष्क से उत्पन्न होकर हमारे शरीर को प्रभावित करती है। जब भी अकेले जीवन जीने का अवसर आए हमें अपने अंदर व्याप्त कमजोरी को खोजना चाहिए। ध्यान कोई क्रिया नहीं है वरन हमारी सोच है। जो है नहीं उसे दिखाना रौद्र ध्यान है। महत्वाकांक्षी बनना भी इसी श्रेणी में आता है। धर्म ध्यान का अर्थ सकारात्मक सोच है। यह उद्गार झाबुआ के बावन जिनालय के उपाश्रय में विराजित साध्वी भगवत कल्पदर्शिता श्री जी ने व्यक्त किए।

साध्वी भगवंत श्री अनुपम दृष्टा श्री जी महाराज साहब ने अपने प्रवचन में कहा कि जिन शासन में जिनवाणी हमारे बीच में है। द्वादशांगी का सार सामयिक में है, समता की साधना है, वर्षा ऋतु में जो काईहरी जम जाती है। उस पर पैर रखने से भी जीव की विराधना होती है। खमासना के अंतर्गत हम बैठते उठते हैं। मनगुप्ति, वचन गुप्ति, काय गुप्ति इन तीन के अंतर्गत रहकर हमें समस्त क्रियाएं करना है।

महासती मदनरेखा के जीवन चरित्र की व्याख्या करते हुए कहा कि मदन रेखा को पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर उसको रत्न कंबल ओढाया। छोटी अंगूठी पूजा की अंगुली में पहनाई। सरोवर का जल पिया एवं नवजात शिशु को छोड़कर आगे चलती है।

बड़नगर चातुर्मास के लिए विराजित आचार्य भगवंत श्री मद विजय दिव्यानंद सूरीश्वर जी महाराज साहब एवं झाबुआ के नंदन मुनि भगंवत श्री विधान विजय जी महाराज साहबआदि ठाणा के दर्शन वंदन करने के लिए श्री संघ के वरिष्ठ श्री तेजप्रकाश जी कोठारी, राजेश मेहता, रमेश बाठिया,उल्लास जैन संजय मेहता के साथ 20 श्रावक श्राविकाओं का दल पहुंचा।

और पड़े

राजेंद्र राठौर

राजेंद्र राठौर टुडे लाइव न्यूज़ के सह-संपादक हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्षों का अनुभव रखने वाले राठौर राजनीतिक, सामाजिक और जनहित से जुड़े विषयों पर उत्कृष्ट पकड़ और विश्लेषण क्षमता के लिए जाने जाते हैं। उनकी लेखनी निष्पक्ष, तथ्यपरक और जनसंवेदनशीलता से परिपूर्ण होती है।

सम्बंधित खबरें

Back to top button
error: Content is protected !!