हृदय की सरलता से माया से स्वयं को बचाया जा सकता है

झाबुआ। जीव कहां से आया है और जीव को कहां जाना है कौन सा जीव किस गति से आया है और कौन सा कार्य करने से जीव किस गति में जाता है इस विषय पर चिंतन चल रहा है आज हम तिर्यच गति के बारे में चिंतन कर रहे हैं जिसकी रीड की हड्डी तिरछी हो उसे तिर्यच कहते हैं इसमें बंदर एक अपवाद है जीव के तिर्यच गति में जाने के चार कारण होते हैं तिर्यंच मैं जाने का पहला कारण माया है, जो हो उसे दबाना और जो नहीं हो उसे बताना माया कहलाता है माया का स्थान पेट है जो दिखाई नहीं देती है माया को हम प्रकट रूप में नहीं देख सकते हैं माया के साथ झूठ भी चलता है जीव सांसारिक और धार्मिक दोनों ही स्थान पर माया करता है ऐसी मान्यता है कि यदि पुरुष माया करें तो वह स्त्री और स्त्री माया करें तो वह तिर्यच गति को प्राप्त करती है कहीं-कहीं इसमें अपवाद भी देखने को आता है महासती श्री प्रज्ञा जी महाराज साहब ने फरमाया कि आचार्य प्रवर श्री उमेश मुनि जी महाराज साहब ने बताया है कि मोक्ष मार्ग से विपरीत जितना भी व्यवहार है वह माया है जिनेश्वर आज्ञा के विपरीत जीव जो बात कर रहा है वह माया है मोक्ष मार्ग के विपरीत व्यवहार करने वाला जीव जिन शासन के संमुख नहीं होता है साध्वी श्री ने माया से बचने के लिए सरलता का मार्ग बताया है सरल व्यक्ति अपनी प्रज्ञा का उपयोग कर हित और अहित को समझता है और अपने हृदय की सरलता से माया से स्वयं को बचा सकता है पूज्या श्री सौम्यप्रभा जी महाराज साहब ने फ़रमाया की जीवन में लिए हुए छोटे-छोटे नियम जीवन सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं छोटी छोटी सी बीमारी आने पर हम व्रत नियम में दोष लगा लेते हैं थोड़ी साता पहुंचाने के लिए अनेक भव बिगाड़ लेते हैं जीवन में हमें कई बार निमित्त प्राप्त होते हैं जब हमें निमित्त प्राप्त हो तब हमें निमित्त पर चिंतन करना चाहिए जब हम चिंतन करेंगे तब हम आगार से अणगार बन सकते हैं तपस्या के क्रम में जानू कटकानी ने 10 उपवास के प्रत्याख्यान लिए, धर्म चक्र के तीन तपस्वियों ने चार-चार उपवास के प्रत्याख्यान लीए श्रीमती सोनाली चोपड़ा और श्रीमती सोनू कटारिया ने तीन तीन उपवास के प्रत्याख्यान लिए पूज्या महासती जी के दर्शन हेतु आज पेटलावद, घाटा बिल्लोद श्री संघ से भी दर्शनार्थी पधारे श्रीमती सीमा जी वोहराने एक स्तवन प्रस्तुत किया