“मेरा गाँव – मेरा तीर्थ” के संकल्प के साथ निकलीं 14 काँवड़ यात्राएँ । 300 गाँवों से आए 7,000 से अधिक युवाओं ने अपने गाँव को तीर्थ बनाने का लिया संकल्प




झाबुआ/आलीराजपुर, जुलाई 2025 – श्रावण मास के पावन अवसर पर “मेरा गाँव – मेरा तीर्थ” के जयघोष के साथ शिवगंगा द्वारा आयोजित 11 काँवड़ यात्राएँ जिलेभर में सम्पन्न हुईं। इन यात्राओं में 300 गाँवों से आए 7,000 से अधिक युवाओं ने भाग लिया और अपने-अपने गाँव के शिवलिंगों पर जल अर्पित कर यह संकल्प लिया कि वे अपने गाँव को एक तीर्थ बनाकर रहेंगे।
काँवड़ यात्रा: गाँव के प्ररि भक्ति जागरण का आयोजन
शिवगंगा संस्था विगत 25 वर्षों से श्रावण मास में काँवड़ यात्राओं के माध्यम से गाँवों में भक्ति, सेवा और समर्पण का जागरण कर रही है। वर्ष 2007 में शिवगंगा द्वारा झाबुआ और आलीराजपुर के 1231 गाँवों में शिवलिंगों की स्थापना की गई थी। उसी समय से ‘एक शिवालय – एक जलाशय’ के संकल्प के साथ जल-संवर्धन की एक क्रांतिकारी पहल प्रारंभ हुई, जो आज पूरे देश के लिए एक अनुकरणीय मॉडल बन चुकी है।
पूर्व तैयारी और सहभागिता
काँवड़ यात्राओं की तैयारी एक माह पूर्व से प्रारंभ होती है। प्रत्येक गाँव से युवाओं की टीमें बनती हैं, वे शुल्क देकर पंजीयन कराते हैं और काँवड़ यात्रा में सहभागी बनते हैं। यात्रा के मध्य में एक धर्मसभा का आयोजन होता है, जिसमें शिवगंगा के कार्यकर्ता युवाओं को अपने गाँव को तीर्थ बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
27 और 28 जुलाई को संपन्न प्रमुख काँवड़ यात्राएँ एवं धर्मसभाएँ
क्रमांक 1 से 14 तक की काँवड़ यात्राओं का विवरण इस प्रकार है:
विकासखंड/क्षेत्र, जल भरने का स्थान, धर्मसभा का स्थान
- पिटोल, केदारनाथ डैम, दाहोद केदारनाथ डैम परिसर
- आजादनगर, झोतराड़ा मंडी, आजादनगर गाँव
- पारा, देवीझरी, धर्मपुरी
- झाबुआ, देवीझरी, पैलेस गार्डन झाबुआ
- कल्याणपुरा, दूधेश्वर महादेव मंदिर
- राणापुर
- अंधारवाड़
- अंतरवेलिया, दूधेश्वर महादेव मंदिर
- रंभापुर, पीपलखुटा मंदिर, पीपलखुटा
- मदरानी, बाबा कोकिंदा देव, मदरानी
- थांदला, शिवसागर, शिवसागर
- उमरकोट, भीमकुंड
- बरवेट, माही नदी, शृंगेश्वर महादेव मंदिर
- रोटला, भादवीया डूंगर रोटला मंदिर
आगामी सोमवार को भी 16 कांवड़ यात्राएं आयोजित की जाएंगी। इस वर्ष कुल मिलाकर 33 कांवड़ यात्राओं का आयोजन होगा।
क्या होता है ‘तीर्थ गाँव’?
शिवगंगा द्वारा प्रस्तुत ‘तीर्थ गाँव’ की परिकल्पना केवल धार्मिक तीर्थ नहीं, बल्कि समग्र समृद्धि का जीवन दर्शन है –
जहाँ भरपूर जल हो
घना व संरक्षित जंगल हो
जहरमुक्त जमीन माता हो
स्वस्थ पशुधन हो
हर घर में फलदार पौधे हों
और सद्भावपूर्वक, सहयोग से रहनेवाले लोग हों
पूजा नहीं, सेवा है समृद्धि का मार्ग
भील समाज जल को जल्हण देवी, जंगल को सावन माता, ज़मीन को धरती माता, जानवरों को गौमाता, और शिव को बाबा देव के रूप में पूजता है। शिवगंगा मानती है कि केवल पूजा से नहीं, बल्कि इन सभी मातृ-तत्वों की सेवा और संवर्धन से ही वास्तविक समृद्धि प्राप्त हो सकती है।
समापन संदेश
इन काँवड़ यात्राओं के माध्यम से युवाओं ने न केवल भगवान शिव को जल अर्पित किया, बल्कि यह प्रतिज्ञा भी की कि वे जल, जंगल, जमीन, पशु और मनुष्यों की सेवा कर अपने गाँव को तीर्थ बनाएँगे। यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक चेतना का परिचायक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ग्राम विकास का भी जनआंदोलन है।
